Tuesday, September 18, 2012


राज है गहराः एलियंस की गिरफ्त में आ गए थे दो मछुआरे





यूएफओ के संपर्क में आने का एक सबसे खतरनाक केस 11 अक्टूबर 1973 के दिन अमेरिका में घटा था। मिसिसिपी के पास्कागोउला में दो मछुआरे 19 वर्षीय केल्विन पार्कर और 42 वर्षीय चार्ल्स हिकसन शहर के पुराने शिपयार्ड के पास एक स्थान पर बैठे मछलियां पकड़ रहे थे।

हिकसन के कांटे में मछली फंसी ही थी कि उन्हें अपने पीछे ऊपर से कुछ आवाज सुनाई दी। उनसे करीब 35 गज पीछे एक 30 फीट व्यास की गोलाकार वस्तु उतरी। उसका दरवाजा खुला और सफेद रंग की लाइट निकली। कुछ ही सेकंड्स में तीन पांच फीट ऊंची आकृतियां उसमें से निकलीं और हवा में तैरते हुए मछुआरे की तरफ बढऩे लगीं।

हिकसन बताते हैं कि ये आकृतियां इंसान नहीं थीं। उनके शरीर का रंग ग्रे था, चमड़ी पर झुर्रियां थीं और हाथों के पंजे भी अलग तरह के थे। उनका गला नहीं था और सिर कंधों पर रखा हुआ था। नाक करीब दो इंच लंबी और नुकीली थी। सिर की दोनों तरफ नाक के जैसे कान थे। जहां नाक का निचला हिस्सा खत्म होता था, ठीक वहीं से मुंह शुरू हो जाता था। हाथ इंसानों के हाथों जैसे ही थे लेकिन शरीर के अनुपात में ज्यादा लंबे थे। पैर जुड़े हुए थे और पैरों के पंजे हाथी के पैर जैसे थे। उनकी आंखें भी रही होंगी लेकिन नाक के ऊपर के हिस्से में इतनी झुर्रियां थीं कि आंखें नजर नहीं आती थीं।

उनमें से दो आकृतियों हिकसन का हाथ पकड़ा और वे खुद को लकवाग्रस्त महसूस करने लगे। तीसरे ने पार्कर को पकड़ा और उन्हें लेकर यान में आ गए। ये गोलाकार कमरे जैसा था, जिसकी दीवारें सफेद थीं। अंदर वे चल नहीं पा रहे थे। दोनों को अलग-अलग कमरों में ले जाया गया। फिर दीवार में से एक सफेद रोशनी की किरण निकली और उसने उनके शरीर को लपेट लिया। इसमें आंख के शेप का लैंस था जो उनका परीक्षण करने लगा। इस दौरान एलियंस वहां नहीं थे। 

एलियंस लौटे और हिकसन को यान से बाहर ले आए। पार्कर भी वहां मौजूद था। इसके बाद यान उड़ गया। हिकसन के दिमाग में टेलीपैथी के जरिए एलियंस ने संदेश भेजा 'हम शांतिप्रिय हैं और तुम्हें नुकसान पहुंचाना नहीं चाहते थे। दोनों तुरंत पुलिस के पास पहुंचे।

शैरिफ को लगा दोनों झूठ बोल रहे होंगे, इसलिए उसने उनके पास टेप छिपाकर उन्हें अकेले छोड़ दिया। बाद में उनकी बातें सुनी तो वे अपनी बात पर कायम ही पाए गए। बहुत से पुलिस अधिकारियों ने भी उसी समय पर यूएफओ देखने की बात कही थी।

Sunday, September 9, 2012


तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा !



मैं आपके साथ Netaji Subhash Chandra Bose द्वारा,4 July, 1944 को बर्मा में भारतीयों के समक्ष दिए गए विश्व प्रसिद्द भाषण “ Give me blood and I shall give you freedom!” ,”तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा !” HINDI में share कर रहा हूँ .ये वही SPEECH है जिसने आज़ादी की लड़ाई में भाग ले रहे करोड़ों लोगों के अन्दर एक नया जोश फूँक दिया था. Give me blood and I shall give you freedom! तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा !
मित्रों ! बारह महीने पहले “ पूर्ण संग्रहण ”(total mobilization) या “परम बलिदान ”(maximum sacrifice) का एक नया कार्यक्रम पूर्वी एशिया में मौजूद भारतीयों के समक्ष रखा गया था . आज मैं आपको पिछले वर्ष की उपलब्धियों का लेखा -जोखा दूंगा और आपके सामने आने वाले वर्ष के लिए हमारी मांगें रखूँगा . लेकिन ये बताने से पहले ,मैं चाहता हूँ कि आप इस बात को समझें कि एक बार फिर हमारे सामने स्वतंत्रता हांसिल करने का स्वर्णिम अवसर है .अंग्रेज एक विश्वव्यापी संघर्ष में लगे हुए हैं और इस संघर्ष के दौरान उन्हें कई मोर्चों पर बार बार हार का सामना करना पड़ा है . इस प्रकार दुश्मन बहुत हद्द तक कमजोर हो गया है ,स्वतंत्रता के लिए हमारी लड़ाई आज से पांच साल पहले की तुलना में काफी आसान हो गयी है . इश्वर द्वारा दिया गया ऐसा दुर्लभ अवसर सदी में एक बार आता है .इसीलिए हमने प्राण लिया है की हम इस अवसर का पूर्ण उपयोग अपनी मात्र भूमि को अंग्रेजी दासता से मुक्त करने के लिए करेंगे . मैं हमारे इस संघर्ष के परिणाम को लेकर बिलकुल आशवस्थ हूँ , क्योंकि मैं सिर्फ पूर्वी एशिया में मौजूद 30 लाख भारतीयों के प्रयत्नों पर निर्भर नहीं हूँ . भारत के अन्दर भी एक विशाल आन्दोलन चल रहा है और हमारे करोडो देशवासी स्वतंत्रता पाने के लिए कष्ट सहने और बलिदान देने को तैयार हैं .
दुर्भाग्यवश 1857 के महासंग्राम के बाद से हमारे देशवासी अस्त्रहीन हैं और दुश्मन पूरी तरह सशश्त्र है . बिना हथियारों और आधुनिक सेना के , ये असंभव है कि इस आधुनिक युग में निहत्थे आज्ज़दी की लड़ाई जीती जा सके . ईश्वर की कृपा और जापानियों की मदद से पूर्वी एशिया में मौजूद भारतीयों के लिए हथियार प्राप्त करके आधुनिक सेना कड़ी करना संभव हो गया है . इसके अलावा पूर्वी एशिया में सभी भारतीय उस व्यक्ति से जुड़े हुए हैं जो स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा है , अंग्रेजों द्वारा भारत मिएँ पैदा किये गए सभी धार्मिक एवं अन्य मतभेद यहाँ मौजूद नहीं हैं . नतीजतन , अब हमारे संघर्ष की सफलता के लिए परिस्थितियां आदर्श हैं - और अब बस इस बात की आवश्यकता है कि भारतीय आज्ज़दी की कीमत चुकाने के लिए खुद सामने आएं . पूर्ण संग्रहण कार्यक्रम के अंतर्गत मैंने आपसे मेन , मनी .मेटेरियल ( लोगों ,धन ,सामग्री )की मांग की थी . जहाँ तक लोगों का सवाल है मुझे ये बताते हुए ख़ुशी हो रही है की मैंने पहले से ही पर्याप्त लोग भारती कर लिए हैं .भरती हुए लोग पूर्वी एशिया के सभी कोनो से हैं - चाईना ,जापान , इंडिया -चाईना , फिलीपींस , जावा , बोर्नो , सेलेबस , सुमात्रा , , मलय , थाईलैंड और बर्मा . आपको मेन ,मनी ,मटेरिअल , की आपूर्ती पूरे जोश और उर्जा के साथ जारी रखना होगा ,विशेष रूप से संचय और परिवहन की समस्या को हल किया जाना चाहिए . हमें मुक्त हुए क्षेत्रों के प्रशाशन और पुनर्निर्माण हेतु हर वर्ग के पुरूषों और महिलाओं की आवश्यकता है .हमें ऐसी स्थिति के लिए तैयार रहना होगा जिसमे दुश्मन किसी इलाके को खाली करते समय इस्कोर्चड अर्थ पालिसी का प्रयोग कर सकता है और आम नागरिकों को भी जगह खाली करने के लिए मजबूर कर सकता है , जैसा की बर्मा में हुआ था . सबसे महत्त्वपूर्ण समस्या मोर्चों पर लड़ रहे सैनिकों को अतरिक्त सैन्य बल और सामग्री पहुंचाने की है .अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो हम लड़ाई के मोर्चों पर अपनी सफलता बनाए रखने की उम्मीद नहीं कर सकते . और ना ही भारत के अन्दर गहरी पैठ करने की उम्मीद कर सकते हैं . आपमें से जो लोग इस घरेलु मोर्चे पर काम करना जारी रखेंगे उन्हें ये कभी नहीं भूलना चाहिए की पूर्वी एशिया - विशेष रूप से बर्मा - आज़ादी की लड़ाई के लिए हमारे आधार हैं . अगर ये आधार मजबूत नहीं रहेगा तो हमारी सेना कभी विजयी नहीं हो पायेगी .


याद रखिये ये “पूर्ण युद्ध है ”- और सिर्फ दो सेनाओं के बीच की लड़ाई नहीं . यही वज़ह है की पूरे एक साल से मैं पूर्व मेंपूर्ण संग्रहण के लिए जोर लगा रहा हूँ . एक और वजह है कि क्यों मैं आपको घरेलु मोर्चे पर सजग रहने के लिए कह रहा हूँ . आने वाले महीनो में मैं और युद्ध समिति के मेरे सहयोगी चाहते हैं की अपना सारा ध्यान लड़ाई के मोर्चों और भारत के अन्दर क्रांति लेन के काम पर लगाएं . इसीलिए , हम पूरी तरह आस्वस्थ होना चाहते हैं कि हमारी अनुपस्थिति में भी यहाँ का काम बिना बाधा के सुचारू रूप से चलता रहेगा . मित्रों , एक साल पहले जब मैंने आपसे कुछ मांगें की थी , तब मैंने कहा था की अगर आप मुझे पूर्ण संग्रहण देंगे तो मैं आपको ’दूसरा मोर्चा’ दूंगा . मैंने उस वचन को निभाया है . हमारे अभियान का पहला चरण ख़तम हो गया है . हमारे विजयी सैनिक जापानी सैनिकों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर लड़ रहे हैं , उन्होंने दुश्मन को पीछे ढकेल दिया है और अब बहादुरी से अपनी मात्रभूमि की पावन धरती पर लड़ रहे हैं. आगे जो काम है उसके लिए अपनी कमर कस लीजिये. मैंने मेन,मनी,मटेरिअल के लिए कहा था. मुझे वो पर्याप्त मात्र में मिल गए हैं. अब मुझे आप चाहियें. मेन ,मनी मटेरिअल अपने आप में जीत या स्वतंत्रता नहीं दिला सकते. हमारे अन्दर प्रेरणा की शक्ति होनी चाहिए जो हमें वीरतापूर्ण और साहसिक कार्य करने के लिए प्रेरित करे. सिर्फ ऐसी इच्छा रखना की अब भारत स्वतंत्र हो जायेगा क्योंकि विजय अब हमारी पहुंच में है एक घातक गलती होगी.
किसी के अन्दर स्वतंत्रता का आनंद लेने के लिए जीने की इच्छा नहीं होनी चाहिए. हमारे सामने अभी भी एक लम्बी लड़ाई है. आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए- मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके- एक शहीद की मृत्यु की इच्छा, ताकि स्वतंत्रता का पथ शहीदों के रक्त से प्रशस्त हो सके. मित्रों! स्वतंत्रता संग्राम में भाग ले रहे मेरे साथियों ! आज मैं किसी भी चीज से ज्यादा आपसे एक चीज की मांग करता हूँ. मैं आपसे आपके खून की मांग करता हूँ. केवल खून ही दुश्मन द्वारा बहाए गए खून का बदला ले सकता है. सिर्फ ओर सिर्फ खून ही ही आज़ादी की कीमत चुका सकता है. तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा ! - सुभाष चन्द्र बोस



Tuesday, September 4, 2012


दुनिया यूं ही नहीं मानती नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की लीडरशिप का लोहा!

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की छवि हमेशा से एक ‘विजनरी और मिशनरी’ नेता के रूप में रही, जिन्होंने न सिर्फ पूर्णतः स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत का स्वप्न देखा बल्कि उसे बतौर मिशन पूरा किया.
उनके नेतृत्व की क्षमता के बारे में यह कहना गलत नहीं होगा कि यदि वह ‌आजादी के समय मौजूद होते तो देश का विभाजन न होता और भारत एक संघ राष्ट्र के रूप में कार्य करता. स्वयं महात्मा गांधी ने एक अमेरिकी पत्रकार से बातचीत के दौरान इस तथ्य को स्वीकार किया था.
नेताजी का ‘विजन’ आज भी प्रासंगिक है जो उन्हें आज भी युवाओं के बीच एक आइकन बनाए हुए हैं. उड़ीसा के कटक शहर में उनका जन्म 23 जनवरी, 1897 को हुआ और 18 अगस्त, 1945 में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हुई जिसे लेकर कई मतभेद हैं. आइए, उनकी पुण्यतिथ‌ि (आधिकारिक) पर उनके नेतृत्व के इन्हीं गुणों को याद करते हैं जो उन्हें एक सच्चा नेता सबित करते हैं.
 सच्चे देशभ‌क्त
सुभाष चंद्र बोस के क्रांतिकारी विचारों और देशभक्ति की दृढ़ भावना ने उन्हें तत्कालीन भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा टॉप करने के बावजूद आजादी की लड़ाई में कूदने की प्रेरणा दी.
स्वतंत्रता सेनानी चितरंजन दास से प्रभावित सुभाष असहयोग आंदोलन में शामिल हुए. 1922 में जब चितरंजन दास ने कांग्रेस के अंतर्गत स्वराज पार्टी का निर्माण किया और कोलकाता महापालिका का चुनाव जीतकर महापौर बने तब सुभाष ने प्रमुख कार्यकारी अधिकारी पद की कमान संभाली.
उन्होंने महापालिका का ढांचा बदल दिया. कोलकाता (तब कलकत्ता) के रास्तों के अंग्रेजी नाम बदलकर भारतीय नाम किए और स्वतंत्रता संग्राम में प्राण न्यौछावर करने वालों के परिजनों को महापालिका में नौकरी मिलने लगी. अंग्रेजों को उन्हीं की बनाई व्यवस्था से खुली चुनौती देने का यह अंदाज उनके जैसे प्रखर नेता का ही हो सकता था.
अंग्रेजों द्वारा 11 बार जेल भेजे जाने वाले नेताजी तत्कालीन परिस्थितियों में स्वराज के समर्थक थे. यही वजह थी कि उन्होंने खुद को कांग्रेस से अलग कर स्वराज के संघर्ष को एक नई दिशा दी.
युवाशक्त‌ि को आंदोलन से जोड़ना
नेताजी ने युवा वर्ग को आजादी की लड़ाई से जोड़ने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई. सिंगापुर के रेडियो प्रसारण द्वारा नेताजी के आह्वान, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का ही परिणाम रहा जिसने युवाओं को प्रेरणा दी.
बोस का मानना था कि युवा शक्ति सिर्फ गांधीवादी विचारधारा पर चलकर स्वतंत्रता नहीं पा सकती, इसके लिए प्राणों का बलिदान जरूरी है. यही वजह थी कि उन्होंने 1943 में ‘आजाद हिंद फौज’ को एक सशक्त स्वतंत्र सेना के रूप में गठित किया और युवाओं को इससे प्रत्यक्ष रूप से जोड़ा.
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान की सहायता से बनी इस फौज में उन्होंने महिलाओं के लिए ‘झांसी की रानी’ रेजिमेंट बनाकर महिलाओं को आजादी के आंदोलन में शामिल किया.
गीता से प्रेरित कर्म का दर्शन
नेताजी का मानना था कि अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष में भागवत गीता प्रेरणा का स्रोत है. वह अपनी युवावस्था से ही स्वामी विवेकानंद से प्रभावित थे.
नेताजी खुद को समाजवादी मानते थे. उनके बारे में इतिहासकार लियोनार्ड गॉर्डन ने उनके बारे में माना, ‘आंतरिक धार्मिक खोज उनके जीवन का भाग रही. यही वजह है जिसने उन्हें तत्कालीन नास्तिक समाजवादियों व कम्युनिस्टों की श्रेणी से अलग रखा.’
 स्वराज के मिशन पर समर्पित जीवन
नेताजी ने हमेशा ही पूर्ण स्वराज का स्वप्न देखा और उसी दिशा में स्वराज के लिए प्रयास भी किए. यही उनके और गांधीवादियों के बीच मतभेद की एक बड़ी वजह रही लेकिन उनके इस स्वप्न ने स्वतंत्रता के प्रयासों को न सिर्फ देश के भीतर बल्कि विदेश में भी सक्रिय करने में काफी मदद की.
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजी शासन के विरुद्ध इटली, जर्मनी और जापान जैसे देशों के सहयोग से उनकी आजाद हिंद सेना ने भारतीय स्वाधीनता के लिए कई हाथ जुटाए. एक तरह से अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने के पीछे स्वराज की यही धारणा प्रेरणा रही.
आदर्श व्यक्तित्व
नेताजी एक आदर्श नेता का सदैव उदाहरण रहेंगे. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान के सहयोग से आजाद हिंद फौज ने भारत पर आक्रमण कर अंडमान और निकोबार द्वीप को अंग्रेजों की गिरफ्त से छुड़ा लिया.
नेताजी ने इन द्वीपों का नाम ‘शहीद’ और ‘स्वराज द्वीप’ रखा और इस जीत से उत्साहित सेना ने इंफाल और कोहिमा की ओर कूच किया. इस बार अंग्रेजों का पलड़ा भारी रहा और उन्हें पीछे हटना पड़ा. इस परिस्थिति में जापानी सेना ने उन्हें भगाने की व्यवस्था की लेकिन नेताजी ने झांसी की रानी रेजिमेंट के साथ मिलकर लड़ना ही पसंद किया.
5 जुलाई, 1943 को सिंगापुर में आजाद हिंद फौज की परेड के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाषण का ‌हिंदी अनुवादः
”वर्तमान में मैं आपको भूख, तृष्णा, अभाव और मृत्यु के अलावा कुछ नहीं दे सकता, लेकिन अगर आप मेरा अनुसरण अपने जीवन व मृत्यु तक करेंगे तो मुझे विश्वास है कि मैं आपको विजय और स्वतंत्रता तक पहुंचाऊंगा. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम लोगों में से कौन स्वतंत्र भारत को देखने के लिए जीवित रहेगा, इतना काफी है कि भारत स्वतंत्र रहेगा और हम अपना सर्वस्व देकर भारत को स्वतंत्र करेंगे.”

Saturday, December 24, 2011


Photo of Huge (55ft) snake shocks World



Photograph purporting to show a 55ft snake found in a forest in Malasia has become an internet sensation.
serpiente gigante
The thread claimed the snake was one of two enormous boas found by workers clearing forest for a new road. They apparently woke up the sleeping snakes during attempts to bulldoze a huge mound of earth.
“On the third dig, the operator found there was blood amongst the soil, and with a further dig, a dying snake appeared,” said the post.
“By the time the workers came back, the wounded boa had died, while the other snake had disappeared. The bulldozer operator was so sick that he couldn’t even stand up.”
The post claimed that the digger driver was so traumatised that he suffered a heart attack on his way to hospital and later died.
The dead snake was 55ft (16.7m) long, weighed 300kg and was estimated to be 140 years old, according to the post.

Friday, October 14, 2011

कुछ अजीबो गरीब पेड़ पौधों की जानकारियां और उनके चित्र
स्तों !
इस अदभुत पेड़ का नाम है " नारीपोल " (nareepol) . नारी का मतलब "लड़की / औरत" और "पोल" का मतलब पेड़ / पौधा . इसका मतलब है यह महिलाओं के पेड़ है . यह आश्चर्यजनक है कि भगवान ने क्या दुनिया बनायीं है कि मानव जाति को भी कई रूपों में.......................

ये पेड़ वाकई में है और ये पेड़ थाईलैंड में पाया जाता है . अगर आपको ये पेड़ देखना हो तो आप पेत्चाबून चले जाये . ये करीब ५०० किलोमीटर दूर है बैंकाक से........
लीजिए कुछ और भी तस्वीरें इस पेड़ की ......

Name:  nareepol-tree2.jpg
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Thursday, June 23, 2011

वोह सफेद दाग ! 


यह अजीबोगरीब वाकया हमारे देश की राजधानी दिल्ली का है ….उस समय तक दिल्ली पूरी तरह से आबाद नहीं हुई थी ….शहर के बाहर की तरफ लंबे – चौड़े बियाबान जंगल हुआ करते थे ….हमारी इस कहानी के नायक को अपने काम से वापिस आते हुए एक जटाधारी साधु मिल गया सड़क पे चलते – चलते …. और वोह धार्मिक स्वभाव का प्राणी उन साधु महाशय को अपने साथ घर में ले आया …उन साधु महाराज ने कहा कि इतवार को हम शहर की बाहर कि तरफ के जंगल में चलेंगे ….. नियत दिन को साधु महाराज ने अपने लिए सभी जरूरी समान लिया जो की उन्होंने पहले से ही मंगवा कर रख लिया था …. .और अपनी पूरी तैयारी करके उस व्यक्ति को साथ में लेकर दोनों जने दोपहर से पहले जंगल में पहुँच गये …..

वहाँ पहुँचने पर साधू महाराज ने उस को कहाँ कि अब मैं एक अजब कौतुक करने वाला हूँ ….क्या तू इतने मजबूत दिल का है कि उसको देख सकता है ? … उस व्यक्ति के इनकार करने पर साधु महाराज ने कहा कि वैसे भी उसका तो तुमको थोड़ी दूर से ही नज़ारा करना पड़ेगा , यहाँ रह कर तो तू उसको देख भी नहीं सकेगा …. यह कहते हए उसको एक चौड़े तने वाले बड़े सारे पेड़ पर चढ़ जाने को कहा …..
उसके बाद वोह पालथी मार कर ज़मीन पर बैठ गए ….उन्होंने अपने साथ लाए हुए झोले में से किसी तरल पदार्थ की एक बोतल निकाली ….. और सावधानीपूर्वक उस का सारा द्रव्य अपने सारे शरीर के ऊपर सिर से लेकर पैर तक बहुत ही अच्छी तरह से मालिश की तरह मल लिया ….. फिर इस बात से पूरी तरह आश्वश्त होने के बाद कि शरीर का कोई भी अंग या कोना उस द्रव्य से अछूता नहीं रह गया …उन्होंने अपने झोले से एक अजीब सी लकड़ी की बनी हुई पुंगी निकाली …उसको ना तो बांसुरी और ना ही सपेरों वाली बीन ही कहा जा सकता था उस वाद्ध यंत्र को अपने मुह से लगा कर उन साधु महाराज ने अपनी आँखे बंद कर के पूरी मस्ती में आकर बजाना शुरू कर दिया …और उस वाद्ध यंत्र से एक अजीब सी धुन निकल कर उस जंगल की फिजा में गूंज उठी ….अभी कुछ पल ही बीते थे कि ना जाने कहाँ -२ से , सभी दिशाओं से सांप आ – आकर वहाँ पे इकटठा होने लग गये …..उन सबमें ही यह खासियत थी कि वोह सभी एक ही किस्म से ताल्लुक रखते थे …उन सभी ने उन साधू महाराज से कुछ दुरी बनाते हुए उनके इर्द – गिर्द एक गौल घेरा सा बना लिया था …..


साधु महाराज ने अपनी आँखे खोल कर चारों तरफ का अच्छी तरह से जायजा लिया ….जब उनको पूरा इत्मीनान हो गया कि इस नस्ल का अब कोई भी और सांप नहीं आएगा तब उन्होंने अचानक ही अपनी उस पुंगी में से बजने वाली धुन के स्वरों को बदल दिया …अब वातावरण में एक दूसरी तरह कि धुन गूंजने लग गई थी … और उस धुन के बदलते ही अब जो सांप आने लग गये थे वोह बिलकुल ही दूसरी किस्म के थे…. उन्होंने भी वहाँ पे आकर पहले वाले सांपो के ऊपर की तरफ कुछ फासला कायम रखते हुए पहले वाले गोल दायरे से बड़ा एक दूसरा गोल दायरा बना लिया था ….
इसी प्रकार वोह साधु धुनों को बदल -२ कर अलग -२ तरह की स्वर लहरियों को छेड़ता रहा और एक के बाद एक करके अलग -२ तरह के कई दायरे सांपो के वहाँ पे बनते चले गये …. और आखिर में उस साधू ने एक अजीब सी धुन छेड़ी ….. उसके फिज़ा में गूंजते ही सारा वातावरण अजीब और रहस्यमय सा लगने लग गया ….काफी देर के बाद उस साधु कि मेहनत रंग ले आयी ….उसने दूर से ही देखा कि दो काले रंग के किंग – कोबरा जैसे सांप अपने फन आपस में जोड़ कर फैलाए हुए एक ही चाल से चलते चले आ रहे थे ….और मज़े कि बात यह की उनके जुड़े हुए फनों पर बड़े ही आराम से किसी शहंशाह की माफिक अपना फन फैला कर एक और सांप बैठा हुआ था ….. जिसकी लम्बाई बड़ी ही मुश्किल से दो फुट के करीब रही होगी …… जब वोह सांप रूपी सम्राट दो सांपो के फनों पे सवार होकर सबसे आखिर वाले सांपो के दायरे के पास पहुंचा तो उनको बड़े ही अदब से रास्ते में आने वाले सांपो द्वारा अगल –बगल हटते हुए आगे जाने का रास्ता दे दिया गया …. इसी प्रकार उनसे आगे के बाकी के दायरे वाले सांप भी उनको रास्ता देते चले गए जब सांपो के आखरी घेरे को उन्होंने पार किया तो वोह लाल रंग का सम्राट उन दो सांपो के फनों से उतर कर उन साधू महाराज के बिलकुल ही पास पहुँच गया ….. उधर – ऊपर पेड़ पर चढ़े हुए उस आदमी की हालत का आप आसानी से अंदाज़ा लगा सकते है … बस गनीमत यह थी कि उस का हार्ट फेल नहीं हुआ था ……इधर – उस साधु महाराज ने अब उस पुंगी की धुन को बदल दिया था …. और वोह सांप अब रेंगते हुए उनके जिस्म से होते हुआ उनके सिर पर पहुँच गया था …..इस प्रकार उसने उनके सारे बदन का भली – भांति से जायजा लिया ….. शायद और यकीनन वोह उनके बदन के उस हिस्से की तलाश में था कि जोकि उस बोतल वाले द्रव्य के लेप से अछूता रह गया हो … लेकिन उस सांपो के राजा के हाथ घोर निराशा ही लगी …. अपनी उस कोशिश में विफल होने के बाद अब वोह उन साधु महाराज के जिस्म से रेंगते हुए उतरकर उनके सामने अपना फन फैलाऐ हुए गुस्से से लहराने लग गया था ….लेकिन साधु महाराज अपनी हू मस्ती में उस पुंगी को बजाते ही रहे …. कुछ देर के बाद वोह सांपो का सम्राट अब उस पुंगी की धुन पे मस्त सा हो चला था ….. वोह साधु महाराज भी शायद इसी वक्त का इंतज़ार कर रहे थे …पुंगी बजाते हुए ही उन्होंने अपने बिलकुल पास ही रखा हुआ तेज़धार चाक़ू अपने हाथ में बड़ी ही सावधानीपूर्वक उठा लिया …. और उस साधु ने उचित मौका देखकर उस सांपो के राजा का अपने दूसरे हाथ में थामे हुए चाकू के एक ही वार से काम तमाम करते हुए उसके फन को धड़ से अलग कर दिया …..उस सांपो के राजा के मरने भर की देर थी कि गोल दायरों में अपना -२ फन फैला कर बैठे हुए सभी सांप चुपचाप उदास मन से चले गये जिधर से कि शायद वोह आये थे …..उन सभी के चले जाने के बाद साधु महाराज ने उस व्यक्ति को आवाज देकर नीचे बुलाना चाहा … मगर उसकी हालत इतनी पतली थी कि उसको साधु महाराज को पेड़ पर चढ़ कर हिम्मत के साथ सहारा देते हुए नीचे उतारना पड़ा …..और उसके होश कुछ देर बाद किसी हद तक सामान्य होने पर साधु महाराज ने उसको आग जलाने के लिए कुछेक लकड़ियो कि व्यवस्था करने को कहा ….. आग के जलने पर उस साधु ने अपने साथ पहले से लायी हुई एक छोटी सी कढ़ाही में तेल डाल दिया ….उसके अच्छी तरह गर्म होने पर उसमें अपने झोले में से कई तरह के मसाले निकाल कर उस कढ़ाही में डाल दिए …उसके बाद सबसे आखिर में उस म्रत सांप के कई छोटे -२ टुकड़े काट कर के उस कढ़ाही में डाल दिए ….
उस अपनी तरह के इस सृष्टि के अनोखे पकवान के तैयार हो जाने पर साधु ने वोह रोटियां निकाली जो कि वोह आते समय बनवा कर साथ में ले आया था … साधु ने खाना खाने के लिए उस आदमी को भी कहा … लेकिन बहुत जोर देने पर भी वोह किसी भी तरह खाना खाने में उस साधु का साथ देने को राज़ी नहीं हुआ ….तब साधू ने बहुत ही ज़बरदस्ती करते हुए रौब से उसकी हथेली पे उस पकवान का थोड़ा सा मसाला रख दिया कि इसको तो तुमको खाना ही पड़ेगा ….उस बेचारे के होश तो पहले से ही फाख्ता हुए पड़े थे …किसी तरह अपने जी को कड़ा करते हुए डरते – डरते उसने उस मसाले को चाटते हुए निगल सा लिया…
वहाँ का सारा काम ज़ब तमाम हो गया तब उन्होंने अपना समान समेटते हुए वापिस घर की राह पकड़ी …..रास्ते में तो डर के मारे उस व्यक्ति का ध्यान खुद पे नहीं गया … लेकिन जब वोह उस जंगल को पार करके शहर कि आबादी वाले इलाके से थोड़ी ही दूरी पे पहुंचे थे … तो उस व्यक्ति का ध्यान एकाएक अपने शरीर की तरफ चला गया … यह देख कर उसकी हैरानी की कोई हद ना रही कि उसका सारा शरीर तो जैसे चांदी जैसे रंग का हो कर दमकने लग गया था … तब वोह उस साधु के चरणों पे गिर गया कि यह क्या हो गया है मुझको …अब लोग मुझसे मेरी इस हालत के बारे में पूछेंगे तो मैं क्या जवाब दूँगा उन सबको ?….साधु ने कहा कि बस इतनी सी ही बात ! …. उनको तुम कुछ भी कह देना मगर असली बात मत बताना …..लेकिन वोह व्यक्ति बार -२ उनसे खुद को पहले जैसी हालत में लाने की ही प्रार्थना करता रहा …तब उस साधु ने उसको यह कहते हुए पहले जैसी अवस्था में ला दिया कि “ जा रे , तू इतनी सी बात भी गुप्त नहीं रख सकता था”……उसके बाद वोह साधु महाराज अपने अगले गंतव्य की और चले गये और वोह शख्श अपने होशो – हवाश को दरुस्त करता हुआ किसी ना किसी तरह से अपने घर पहुँच गया … पूरे दो दिन तक वोह बुखार में अपने घर में ही पड़ा रहा …..बाद में जब उसने लोगो को अपने साथ घटने वाले उस सारे वाकये को बताया तो किसी ने तो उसकी बात पे विश्वाश किया और किसी ने नहीं …मगर हर ना विश्वाश करने वाले को वोह अपनी हथेली पर चांदी के रंग का बना हुआ वोह निशान जरूर दिखलाता …जोकि साधु द्वारा उसकी हथेली पर रखे हुए उस पकवान के रखे जाने पर बन गया था ……

( एक सत्य घटना पर आधारित – भुक्त भोगी और उस वाकये के चश्मदीद द्वारा जैसे कि बताया गया )
खौफनाक और रहस्यमयी झील है पांडुजी....


दक्षिणी अफ्रीका के प्रांत उत्तरी ट्रांसवाल में पांडुजी नाम की एक अद्भुत झील है। इस झील के बारे में कहा जाता है कि इसके पानी को पीने के बाद कोई जिन्दा नहीं रहा और न ही आज तक कोई वैज्ञानिक इसके पानी का रासायनिक विश्लेषण ही कर पाया है। मुटाली नामक जिस नदी से इस झील में पानी आता हैउसके उद्गम स्थल का पता लगाने की भी कोशिशें की गईं। मगर इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी। खास बात यह भी है कि इस झील का पानी अजीबो-गरीब तरीके से ज्वार भाटे की तरह उठता है व गिरता है।सन् 1947 में हैडरिक नामक एक किसान ने झील में नाव चलाने का प्रयास किया। नाव सहित जैसे ही वह झील के बीचों-बीच पहुंचारहस्यमय तरीके से गायब हो गया। हैडरिक और उसकी नाव का कहीं कोई पता नहीं चल पाया। सन् 1953 में बर्न 
साइड नामक एक प्रोफेसर ने इस झील के रहस्य से पर्दा उठाने का बीडा उठाया। प्रोफेसर बर्न साइड अपने एक सहयोगी के साथ अलग-अलग आकार की 16 शीशियां लेकर पांडुजी झील की तरफ चल पडे। उन्होंने अपने इस काम में पास ही के बावेंडा कबीले के लोगों को भी शामिल करना चाहा, लेकिन कबीले के लोगों ने जैसे ही पांडुजी झील का नाम सुना तो वे बिना एक पल की देर लगाए वहां से भाग खडे हुए। कबीले के एक बुजुर्ग आदिवासी ने बर्न साइड को सलाह दी कि अगर उन्हें अपनी और अपने सहयोगी की जान प्यारी है तो पांडुजी झील के रहस्य को जानने का विचार फौरन ही छोड दें। उसने कहा कि वह मौत की दिशा में कदम बढा रहा है, क्योंकि आज तक जो भी झील के करीब गया है उसमें से कोई भी जिन्दा नहीं बचा।
प्रोफेसर बर्न साइड वृध्द आदिवासी की सुनकर कुछ वक्त के लिए परेशान जरूर हुए, लेकिन वे हिम्मत नहीं हारे। साहस जुटाकर वह फिर झील की तरफ चल पडे। एक लंबा सफर तय कर जब वे झील के किनारे पहुंचे तब तक रात की स्याही फिजा को अपनी आगोश में ले चुकी थी। अंधेरा इतना घना था कि पास की चीज भी दिखाई नहीं दे रही थी। इस भयानक जंगल में प्रोफेसर बर्न साइड ने अपने सहयोगी के साथ सुबह का इंतजार करना ही बेहतर समझा। सुबह होते ही बर्न साइड ने झील के पानी को देखा, जो काले रंग का था। उन्होंने अपनी अंगुली को पानी में डुबोया और फिर जबान से लगाकर चखा। उनका मुंह कडवाहट से भर गया। इसके बाद बर्न साइड ने अपने साथ लाई गईं शीशियों में झील का पानी भर लिया। प्रोफेसर ने झील के आसपास उगे पौधों और झाडियों के कुछ नमूने भी एकत्रित किए। शाम हो चुकी थी। उन्होंने और उनके सहयोगी ने वहां से चलने का फैसला किया। वे कुछ ही दूर चले थे कि रात घिर आई। वे एक खुली जगह पर रात गुजारने के मकसद से रुक गए। झील के बारे में सुनीं बातों को लेकर वे आशंकित थे ही, इसलिए उन्होंने तय किया कि बारी-बारी से सोया जाए। जब प्रोफेसर बर्न साइड सो रहे थे तब उनके सहयोगी ने कुछ अजीबो-गरीब आवाजें सुनीं। उसने घबराकर प्रोफेसर को जगाया। सारी बात सुनने पर बर्न साइड ने आवाज का रहस्य जानने के लिए टार्च जलाकर आसपास देखा, लेकिन उन्हें कुछ भी पता नहीं चला। आवाजों के रहस्य को लेकर वे काफी देर तक सोचते रहे।

सवेरे चलने के समय जैसे ही उन्होंने पानी की शीशियों को संभाला तो वे यह देखकर हैरान रह गए कि शीशियां खाली थीं। हैरानी की एक बात यह भी थी कि शीशियों के ढक्कन ज्यों के त्यों ही लगे हुए थे। वे एक बार फिर पांडुजी झील की तरफ चल पडे। बर्न साइड खुद को अस्वस्थ महसूस कर रहे थे। उनके पेट में दर्द भी हो रहा था। वे झील के किनारे पहुंचे। बोतलों में पानी भरा और फिर वापस लौट पडे। रास्ते में रात गुजारने के लिए वे एक स्थान पर रुके, लेकिन इस बार उनकी आंखों में नींद नहीं थी। सुबह दोनाें यह देखकर फिर हैरान रह गए कि शीशियां खाली थीं।
बर्न साइड का स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा था, इसलिए वे खाली हाथ ही लौट पडे। घर पहुंचने पर नौवें दिन बर्न साइड की मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक आंतों में सूजन आ जाने के कारण बर्न साइड की मौत हुई थी। प्रोफेसर द्वारा एकत्रित झील के समीप उगे पौधों के नमूने भी इतने खराब हो चुके थे कि उनका परीक्षण कर पाना मुमकिन नहीं था।

बर्न साइड का जो सहयोगी उनके साथ पांडुजी झील का रहस्य जानने गया था, उनकी मौत के एक हफ्ते बाद पिकनिक मनाने समुद्र में गया। वह एक नाव में बैठकर समुद्र के किनारे से बहुत दूर चला गया। दो दिन बाद समुद्र तट पर उसकी लाश पाई गई। आज तक इस रहस्य का पता नहीं लग पाया है कि उसकी मौत महज एक हादसा थी या खौफनाक पांडुजी झील का अभिशाप। इस अभिशप्त झील के बारे में जानकारी हासिल करने वालों की मौत भी इस झील के रहस्य की तरह ही एक रहस्य बनकर रह गई है।