Tuesday, September 18, 2012


राज है गहराः एलियंस की गिरफ्त में आ गए थे दो मछुआरे





यूएफओ के संपर्क में आने का एक सबसे खतरनाक केस 11 अक्टूबर 1973 के दिन अमेरिका में घटा था। मिसिसिपी के पास्कागोउला में दो मछुआरे 19 वर्षीय केल्विन पार्कर और 42 वर्षीय चार्ल्स हिकसन शहर के पुराने शिपयार्ड के पास एक स्थान पर बैठे मछलियां पकड़ रहे थे।

हिकसन के कांटे में मछली फंसी ही थी कि उन्हें अपने पीछे ऊपर से कुछ आवाज सुनाई दी। उनसे करीब 35 गज पीछे एक 30 फीट व्यास की गोलाकार वस्तु उतरी। उसका दरवाजा खुला और सफेद रंग की लाइट निकली। कुछ ही सेकंड्स में तीन पांच फीट ऊंची आकृतियां उसमें से निकलीं और हवा में तैरते हुए मछुआरे की तरफ बढऩे लगीं।

हिकसन बताते हैं कि ये आकृतियां इंसान नहीं थीं। उनके शरीर का रंग ग्रे था, चमड़ी पर झुर्रियां थीं और हाथों के पंजे भी अलग तरह के थे। उनका गला नहीं था और सिर कंधों पर रखा हुआ था। नाक करीब दो इंच लंबी और नुकीली थी। सिर की दोनों तरफ नाक के जैसे कान थे। जहां नाक का निचला हिस्सा खत्म होता था, ठीक वहीं से मुंह शुरू हो जाता था। हाथ इंसानों के हाथों जैसे ही थे लेकिन शरीर के अनुपात में ज्यादा लंबे थे। पैर जुड़े हुए थे और पैरों के पंजे हाथी के पैर जैसे थे। उनकी आंखें भी रही होंगी लेकिन नाक के ऊपर के हिस्से में इतनी झुर्रियां थीं कि आंखें नजर नहीं आती थीं।

उनमें से दो आकृतियों हिकसन का हाथ पकड़ा और वे खुद को लकवाग्रस्त महसूस करने लगे। तीसरे ने पार्कर को पकड़ा और उन्हें लेकर यान में आ गए। ये गोलाकार कमरे जैसा था, जिसकी दीवारें सफेद थीं। अंदर वे चल नहीं पा रहे थे। दोनों को अलग-अलग कमरों में ले जाया गया। फिर दीवार में से एक सफेद रोशनी की किरण निकली और उसने उनके शरीर को लपेट लिया। इसमें आंख के शेप का लैंस था जो उनका परीक्षण करने लगा। इस दौरान एलियंस वहां नहीं थे। 

एलियंस लौटे और हिकसन को यान से बाहर ले आए। पार्कर भी वहां मौजूद था। इसके बाद यान उड़ गया। हिकसन के दिमाग में टेलीपैथी के जरिए एलियंस ने संदेश भेजा 'हम शांतिप्रिय हैं और तुम्हें नुकसान पहुंचाना नहीं चाहते थे। दोनों तुरंत पुलिस के पास पहुंचे।

शैरिफ को लगा दोनों झूठ बोल रहे होंगे, इसलिए उसने उनके पास टेप छिपाकर उन्हें अकेले छोड़ दिया। बाद में उनकी बातें सुनी तो वे अपनी बात पर कायम ही पाए गए। बहुत से पुलिस अधिकारियों ने भी उसी समय पर यूएफओ देखने की बात कही थी।

No comments:

Post a Comment