Tuesday, January 25, 2011


ब्रिटेन में दमकेगा हमारी ‘नूर’ का नूर



द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजियों के कब्जे वाले फ्रांस में ब्रिटेन के लिए बहादुरी से जासूसी करने वाली नूर इनायत खान को लोग भूल गए थे। ब्रिटेन के लिए जान देने वाली बहादुर भारतीय महिला को सम्मान देने के लिए अब लंदन में उनकी प्रतिमा लगाई जा रही है।


करीब 65 साल की गुमनामी के बाद ब्रिटेन ने उस बहादुर हिंदुस्तानी महिला को पहचान देने का फैसला किया है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नूर इनायत खान विंस्टन चर्चिल के विश्वसनीय लोगों में से एक थीं। उन्हें सीक्रेट एजेंट बनाकर नाजियों के कब्जे वाले फ्रांस में भेजा गया था। नूर इनायत ने पेरिस में तीन महीने से ज्यादा वक्त तक सफलतापूर्वक अपना खुफिया नेटवर्क चलाया और नाजियों की जानकारी ब्रिटेन पहुंचाई। इसके बाद वे पकड़ी गईं। उन्हें दस महीने तक बेदर्दी से टॉर्चर किया गया, फिर भी उन्होंने अपनी जुबान नहीं खोली। आखिरकार 13 सितंबर 1944 के दिन उन्हें डाचाउ कॉन्सन्ट्रेशन कैंप में गोली मार दी गई। उस समय उनकी उम्र 30 साल थी।

1949 में नूर इनायत को मरणोपरांत जॉर्ज क्रॉस से नवाजा गया। फिर भी वक्त की धूल इस चमकते हुए नाम पर चढ़ती गई। ऐसे में शर्बनी बसु की लिखी जीवनी ने फिर से उनकी यादें ताजा कर दी हैं। अब लंदन में उनके घर के पास उनकी तांबे से बनी प्रतिमा लगाई जाएगी। यह पहला मौका है जब ब्रिटेन में किसी मुस्लिम या फिर एशियाई महिला की प्रतिमा लग रही है। इसके लिए एक लाख पाउंड जमा किए जा रहे हैं। इस फैसले का वहां एशियाई लोगों के अलावा 34 ब्रिटिश सांसदों ने भी समर्थन किया है।


मेडेलिन नाम रखा गया 

नूर इनायत का जन्म 1 जनवरी 1914 को मॉस्को में हुआ था। उनके पिता भारतीय और मां अमेरिकन थीं। 18वीं सदी में अंग्रेजों को नाकों चने चबवाने वाले टीपू सुल्तान की वे वंशज थीं। उनके पिता धार्मिक शिक्षक थे, जो परिवार के साथ पहले लंदन और फिर पेरिस में बस गए थे। वहीं नूर की पढ़ाई हुई और उन्होंने कहानियां लिखना शुरू किया। नाजियों का जोर बढ़ने पर वे अपने भाई विलायत के साथ ब्रिटेन आ गई थीं। 1940 में वे वहां वूमेन्स ऑक्जिलेरी एयरफोर्स में भर्ती हो गई थीं। दो साल में ही उनके काम के प्रति समर्पण और रेडियो ट्रांसमिटिंग में महारत से अधिकारी काफी प्रभावित हुए। जून 1943 में उन्हें जासूसी के लिए रेडियो ऑपरेटर बनाकर फ्रांस भेज दिया गया था। उनका कोड नाम मेडेलिन रखा गया था। वे भेष बदलकर अलग-अलग जगह से संदेश भेजती रहीं। एक कामरेड की गर्लफ्रेंड ने जलन के मारे उनकी मुखबिरी की और वे पकड़ी गईं। नाजियों ने उनके रेडियो से ब्रिटेन को और एजेंट्स भेजने के संदेश दिए। इन्हें आते ही गेस्टापो ने पकड़ लिया। नवंबर 1943 में उन्हें जर्मनी के फॉर्जेम जेल भेजा गया। यहां उन्हें जंजीरों में जकड़कर सितंबर 1944 तक यातनाएं दी 

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