Thursday, June 23, 2011

वोह सफेद दाग ! 


यह अजीबोगरीब वाकया हमारे देश की राजधानी दिल्ली का है ….उस समय तक दिल्ली पूरी तरह से आबाद नहीं हुई थी ….शहर के बाहर की तरफ लंबे – चौड़े बियाबान जंगल हुआ करते थे ….हमारी इस कहानी के नायक को अपने काम से वापिस आते हुए एक जटाधारी साधु मिल गया सड़क पे चलते – चलते …. और वोह धार्मिक स्वभाव का प्राणी उन साधु महाशय को अपने साथ घर में ले आया …उन साधु महाराज ने कहा कि इतवार को हम शहर की बाहर कि तरफ के जंगल में चलेंगे ….. नियत दिन को साधु महाराज ने अपने लिए सभी जरूरी समान लिया जो की उन्होंने पहले से ही मंगवा कर रख लिया था …. .और अपनी पूरी तैयारी करके उस व्यक्ति को साथ में लेकर दोनों जने दोपहर से पहले जंगल में पहुँच गये …..

वहाँ पहुँचने पर साधू महाराज ने उस को कहाँ कि अब मैं एक अजब कौतुक करने वाला हूँ ….क्या तू इतने मजबूत दिल का है कि उसको देख सकता है ? … उस व्यक्ति के इनकार करने पर साधु महाराज ने कहा कि वैसे भी उसका तो तुमको थोड़ी दूर से ही नज़ारा करना पड़ेगा , यहाँ रह कर तो तू उसको देख भी नहीं सकेगा …. यह कहते हए उसको एक चौड़े तने वाले बड़े सारे पेड़ पर चढ़ जाने को कहा …..
उसके बाद वोह पालथी मार कर ज़मीन पर बैठ गए ….उन्होंने अपने साथ लाए हुए झोले में से किसी तरल पदार्थ की एक बोतल निकाली ….. और सावधानीपूर्वक उस का सारा द्रव्य अपने सारे शरीर के ऊपर सिर से लेकर पैर तक बहुत ही अच्छी तरह से मालिश की तरह मल लिया ….. फिर इस बात से पूरी तरह आश्वश्त होने के बाद कि शरीर का कोई भी अंग या कोना उस द्रव्य से अछूता नहीं रह गया …उन्होंने अपने झोले से एक अजीब सी लकड़ी की बनी हुई पुंगी निकाली …उसको ना तो बांसुरी और ना ही सपेरों वाली बीन ही कहा जा सकता था उस वाद्ध यंत्र को अपने मुह से लगा कर उन साधु महाराज ने अपनी आँखे बंद कर के पूरी मस्ती में आकर बजाना शुरू कर दिया …और उस वाद्ध यंत्र से एक अजीब सी धुन निकल कर उस जंगल की फिजा में गूंज उठी ….अभी कुछ पल ही बीते थे कि ना जाने कहाँ -२ से , सभी दिशाओं से सांप आ – आकर वहाँ पे इकटठा होने लग गये …..उन सबमें ही यह खासियत थी कि वोह सभी एक ही किस्म से ताल्लुक रखते थे …उन सभी ने उन साधू महाराज से कुछ दुरी बनाते हुए उनके इर्द – गिर्द एक गौल घेरा सा बना लिया था …..


साधु महाराज ने अपनी आँखे खोल कर चारों तरफ का अच्छी तरह से जायजा लिया ….जब उनको पूरा इत्मीनान हो गया कि इस नस्ल का अब कोई भी और सांप नहीं आएगा तब उन्होंने अचानक ही अपनी उस पुंगी में से बजने वाली धुन के स्वरों को बदल दिया …अब वातावरण में एक दूसरी तरह कि धुन गूंजने लग गई थी … और उस धुन के बदलते ही अब जो सांप आने लग गये थे वोह बिलकुल ही दूसरी किस्म के थे…. उन्होंने भी वहाँ पे आकर पहले वाले सांपो के ऊपर की तरफ कुछ फासला कायम रखते हुए पहले वाले गोल दायरे से बड़ा एक दूसरा गोल दायरा बना लिया था ….
इसी प्रकार वोह साधु धुनों को बदल -२ कर अलग -२ तरह की स्वर लहरियों को छेड़ता रहा और एक के बाद एक करके अलग -२ तरह के कई दायरे सांपो के वहाँ पे बनते चले गये …. और आखिर में उस साधू ने एक अजीब सी धुन छेड़ी ….. उसके फिज़ा में गूंजते ही सारा वातावरण अजीब और रहस्यमय सा लगने लग गया ….काफी देर के बाद उस साधु कि मेहनत रंग ले आयी ….उसने दूर से ही देखा कि दो काले रंग के किंग – कोबरा जैसे सांप अपने फन आपस में जोड़ कर फैलाए हुए एक ही चाल से चलते चले आ रहे थे ….और मज़े कि बात यह की उनके जुड़े हुए फनों पर बड़े ही आराम से किसी शहंशाह की माफिक अपना फन फैला कर एक और सांप बैठा हुआ था ….. जिसकी लम्बाई बड़ी ही मुश्किल से दो फुट के करीब रही होगी …… जब वोह सांप रूपी सम्राट दो सांपो के फनों पे सवार होकर सबसे आखिर वाले सांपो के दायरे के पास पहुंचा तो उनको बड़े ही अदब से रास्ते में आने वाले सांपो द्वारा अगल –बगल हटते हुए आगे जाने का रास्ता दे दिया गया …. इसी प्रकार उनसे आगे के बाकी के दायरे वाले सांप भी उनको रास्ता देते चले गए जब सांपो के आखरी घेरे को उन्होंने पार किया तो वोह लाल रंग का सम्राट उन दो सांपो के फनों से उतर कर उन साधू महाराज के बिलकुल ही पास पहुँच गया ….. उधर – ऊपर पेड़ पर चढ़े हुए उस आदमी की हालत का आप आसानी से अंदाज़ा लगा सकते है … बस गनीमत यह थी कि उस का हार्ट फेल नहीं हुआ था ……इधर – उस साधु महाराज ने अब उस पुंगी की धुन को बदल दिया था …. और वोह सांप अब रेंगते हुए उनके जिस्म से होते हुआ उनके सिर पर पहुँच गया था …..इस प्रकार उसने उनके सारे बदन का भली – भांति से जायजा लिया ….. शायद और यकीनन वोह उनके बदन के उस हिस्से की तलाश में था कि जोकि उस बोतल वाले द्रव्य के लेप से अछूता रह गया हो … लेकिन उस सांपो के राजा के हाथ घोर निराशा ही लगी …. अपनी उस कोशिश में विफल होने के बाद अब वोह उन साधु महाराज के जिस्म से रेंगते हुए उतरकर उनके सामने अपना फन फैलाऐ हुए गुस्से से लहराने लग गया था ….लेकिन साधु महाराज अपनी हू मस्ती में उस पुंगी को बजाते ही रहे …. कुछ देर के बाद वोह सांपो का सम्राट अब उस पुंगी की धुन पे मस्त सा हो चला था ….. वोह साधु महाराज भी शायद इसी वक्त का इंतज़ार कर रहे थे …पुंगी बजाते हुए ही उन्होंने अपने बिलकुल पास ही रखा हुआ तेज़धार चाक़ू अपने हाथ में बड़ी ही सावधानीपूर्वक उठा लिया …. और उस साधु ने उचित मौका देखकर उस सांपो के राजा का अपने दूसरे हाथ में थामे हुए चाकू के एक ही वार से काम तमाम करते हुए उसके फन को धड़ से अलग कर दिया …..उस सांपो के राजा के मरने भर की देर थी कि गोल दायरों में अपना -२ फन फैला कर बैठे हुए सभी सांप चुपचाप उदास मन से चले गये जिधर से कि शायद वोह आये थे …..उन सभी के चले जाने के बाद साधु महाराज ने उस व्यक्ति को आवाज देकर नीचे बुलाना चाहा … मगर उसकी हालत इतनी पतली थी कि उसको साधु महाराज को पेड़ पर चढ़ कर हिम्मत के साथ सहारा देते हुए नीचे उतारना पड़ा …..और उसके होश कुछ देर बाद किसी हद तक सामान्य होने पर साधु महाराज ने उसको आग जलाने के लिए कुछेक लकड़ियो कि व्यवस्था करने को कहा ….. आग के जलने पर उस साधु ने अपने साथ पहले से लायी हुई एक छोटी सी कढ़ाही में तेल डाल दिया ….उसके अच्छी तरह गर्म होने पर उसमें अपने झोले में से कई तरह के मसाले निकाल कर उस कढ़ाही में डाल दिए …उसके बाद सबसे आखिर में उस म्रत सांप के कई छोटे -२ टुकड़े काट कर के उस कढ़ाही में डाल दिए ….
उस अपनी तरह के इस सृष्टि के अनोखे पकवान के तैयार हो जाने पर साधु ने वोह रोटियां निकाली जो कि वोह आते समय बनवा कर साथ में ले आया था … साधु ने खाना खाने के लिए उस आदमी को भी कहा … लेकिन बहुत जोर देने पर भी वोह किसी भी तरह खाना खाने में उस साधु का साथ देने को राज़ी नहीं हुआ ….तब साधू ने बहुत ही ज़बरदस्ती करते हुए रौब से उसकी हथेली पे उस पकवान का थोड़ा सा मसाला रख दिया कि इसको तो तुमको खाना ही पड़ेगा ….उस बेचारे के होश तो पहले से ही फाख्ता हुए पड़े थे …किसी तरह अपने जी को कड़ा करते हुए डरते – डरते उसने उस मसाले को चाटते हुए निगल सा लिया…
वहाँ का सारा काम ज़ब तमाम हो गया तब उन्होंने अपना समान समेटते हुए वापिस घर की राह पकड़ी …..रास्ते में तो डर के मारे उस व्यक्ति का ध्यान खुद पे नहीं गया … लेकिन जब वोह उस जंगल को पार करके शहर कि आबादी वाले इलाके से थोड़ी ही दूरी पे पहुंचे थे … तो उस व्यक्ति का ध्यान एकाएक अपने शरीर की तरफ चला गया … यह देख कर उसकी हैरानी की कोई हद ना रही कि उसका सारा शरीर तो जैसे चांदी जैसे रंग का हो कर दमकने लग गया था … तब वोह उस साधु के चरणों पे गिर गया कि यह क्या हो गया है मुझको …अब लोग मुझसे मेरी इस हालत के बारे में पूछेंगे तो मैं क्या जवाब दूँगा उन सबको ?….साधु ने कहा कि बस इतनी सी ही बात ! …. उनको तुम कुछ भी कह देना मगर असली बात मत बताना …..लेकिन वोह व्यक्ति बार -२ उनसे खुद को पहले जैसी हालत में लाने की ही प्रार्थना करता रहा …तब उस साधु ने उसको यह कहते हुए पहले जैसी अवस्था में ला दिया कि “ जा रे , तू इतनी सी बात भी गुप्त नहीं रख सकता था”……उसके बाद वोह साधु महाराज अपने अगले गंतव्य की और चले गये और वोह शख्श अपने होशो – हवाश को दरुस्त करता हुआ किसी ना किसी तरह से अपने घर पहुँच गया … पूरे दो दिन तक वोह बुखार में अपने घर में ही पड़ा रहा …..बाद में जब उसने लोगो को अपने साथ घटने वाले उस सारे वाकये को बताया तो किसी ने तो उसकी बात पे विश्वाश किया और किसी ने नहीं …मगर हर ना विश्वाश करने वाले को वोह अपनी हथेली पर चांदी के रंग का बना हुआ वोह निशान जरूर दिखलाता …जोकि साधु द्वारा उसकी हथेली पर रखे हुए उस पकवान के रखे जाने पर बन गया था ……

( एक सत्य घटना पर आधारित – भुक्त भोगी और उस वाकये के चश्मदीद द्वारा जैसे कि बताया गया )
खौफनाक और रहस्यमयी झील है पांडुजी....


दक्षिणी अफ्रीका के प्रांत उत्तरी ट्रांसवाल में पांडुजी नाम की एक अद्भुत झील है। इस झील के बारे में कहा जाता है कि इसके पानी को पीने के बाद कोई जिन्दा नहीं रहा और न ही आज तक कोई वैज्ञानिक इसके पानी का रासायनिक विश्लेषण ही कर पाया है। मुटाली नामक जिस नदी से इस झील में पानी आता हैउसके उद्गम स्थल का पता लगाने की भी कोशिशें की गईं। मगर इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी। खास बात यह भी है कि इस झील का पानी अजीबो-गरीब तरीके से ज्वार भाटे की तरह उठता है व गिरता है।सन् 1947 में हैडरिक नामक एक किसान ने झील में नाव चलाने का प्रयास किया। नाव सहित जैसे ही वह झील के बीचों-बीच पहुंचारहस्यमय तरीके से गायब हो गया। हैडरिक और उसकी नाव का कहीं कोई पता नहीं चल पाया। सन् 1953 में बर्न 
साइड नामक एक प्रोफेसर ने इस झील के रहस्य से पर्दा उठाने का बीडा उठाया। प्रोफेसर बर्न साइड अपने एक सहयोगी के साथ अलग-अलग आकार की 16 शीशियां लेकर पांडुजी झील की तरफ चल पडे। उन्होंने अपने इस काम में पास ही के बावेंडा कबीले के लोगों को भी शामिल करना चाहा, लेकिन कबीले के लोगों ने जैसे ही पांडुजी झील का नाम सुना तो वे बिना एक पल की देर लगाए वहां से भाग खडे हुए। कबीले के एक बुजुर्ग आदिवासी ने बर्न साइड को सलाह दी कि अगर उन्हें अपनी और अपने सहयोगी की जान प्यारी है तो पांडुजी झील के रहस्य को जानने का विचार फौरन ही छोड दें। उसने कहा कि वह मौत की दिशा में कदम बढा रहा है, क्योंकि आज तक जो भी झील के करीब गया है उसमें से कोई भी जिन्दा नहीं बचा।
प्रोफेसर बर्न साइड वृध्द आदिवासी की सुनकर कुछ वक्त के लिए परेशान जरूर हुए, लेकिन वे हिम्मत नहीं हारे। साहस जुटाकर वह फिर झील की तरफ चल पडे। एक लंबा सफर तय कर जब वे झील के किनारे पहुंचे तब तक रात की स्याही फिजा को अपनी आगोश में ले चुकी थी। अंधेरा इतना घना था कि पास की चीज भी दिखाई नहीं दे रही थी। इस भयानक जंगल में प्रोफेसर बर्न साइड ने अपने सहयोगी के साथ सुबह का इंतजार करना ही बेहतर समझा। सुबह होते ही बर्न साइड ने झील के पानी को देखा, जो काले रंग का था। उन्होंने अपनी अंगुली को पानी में डुबोया और फिर जबान से लगाकर चखा। उनका मुंह कडवाहट से भर गया। इसके बाद बर्न साइड ने अपने साथ लाई गईं शीशियों में झील का पानी भर लिया। प्रोफेसर ने झील के आसपास उगे पौधों और झाडियों के कुछ नमूने भी एकत्रित किए। शाम हो चुकी थी। उन्होंने और उनके सहयोगी ने वहां से चलने का फैसला किया। वे कुछ ही दूर चले थे कि रात घिर आई। वे एक खुली जगह पर रात गुजारने के मकसद से रुक गए। झील के बारे में सुनीं बातों को लेकर वे आशंकित थे ही, इसलिए उन्होंने तय किया कि बारी-बारी से सोया जाए। जब प्रोफेसर बर्न साइड सो रहे थे तब उनके सहयोगी ने कुछ अजीबो-गरीब आवाजें सुनीं। उसने घबराकर प्रोफेसर को जगाया। सारी बात सुनने पर बर्न साइड ने आवाज का रहस्य जानने के लिए टार्च जलाकर आसपास देखा, लेकिन उन्हें कुछ भी पता नहीं चला। आवाजों के रहस्य को लेकर वे काफी देर तक सोचते रहे।

सवेरे चलने के समय जैसे ही उन्होंने पानी की शीशियों को संभाला तो वे यह देखकर हैरान रह गए कि शीशियां खाली थीं। हैरानी की एक बात यह भी थी कि शीशियों के ढक्कन ज्यों के त्यों ही लगे हुए थे। वे एक बार फिर पांडुजी झील की तरफ चल पडे। बर्न साइड खुद को अस्वस्थ महसूस कर रहे थे। उनके पेट में दर्द भी हो रहा था। वे झील के किनारे पहुंचे। बोतलों में पानी भरा और फिर वापस लौट पडे। रास्ते में रात गुजारने के लिए वे एक स्थान पर रुके, लेकिन इस बार उनकी आंखों में नींद नहीं थी। सुबह दोनाें यह देखकर फिर हैरान रह गए कि शीशियां खाली थीं।
बर्न साइड का स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा था, इसलिए वे खाली हाथ ही लौट पडे। घर पहुंचने पर नौवें दिन बर्न साइड की मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक आंतों में सूजन आ जाने के कारण बर्न साइड की मौत हुई थी। प्रोफेसर द्वारा एकत्रित झील के समीप उगे पौधों के नमूने भी इतने खराब हो चुके थे कि उनका परीक्षण कर पाना मुमकिन नहीं था।

बर्न साइड का जो सहयोगी उनके साथ पांडुजी झील का रहस्य जानने गया था, उनकी मौत के एक हफ्ते बाद पिकनिक मनाने समुद्र में गया। वह एक नाव में बैठकर समुद्र के किनारे से बहुत दूर चला गया। दो दिन बाद समुद्र तट पर उसकी लाश पाई गई। आज तक इस रहस्य का पता नहीं लग पाया है कि उसकी मौत महज एक हादसा थी या खौफनाक पांडुजी झील का अभिशाप। इस अभिशप्त झील के बारे में जानकारी हासिल करने वालों की मौत भी इस झील के रहस्य की तरह ही एक रहस्य बनकर रह गई है।
काल से परे जाने का रहस्य खुलेगा
वॉशिंगटन,काफी समय से विज्ञान कथाओं का प्रिय विषय रहा काल से परे जाने की यात्रा का रहस्य अब अत्यंत सूक्ष्म कणों के माध्यम से खुलने की संभावना बन गई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस रहस्य का पर्दा जिनेवा में भूमि के नीचे स्थित लार्ज हाइड्रन कोलाइडर (एलएचसीमें उठ सकता है।
एलएचसी एक भीमकाय वैज्ञानिक उपकरण हैजो पार्टिकल एक्सीलेटर के काम को अंजाम देता है। भौतिकी वैज्ञानिकों ने लांग शॉट’ सिद्धांत में प्रस्ताव किया है कि दुनिया के विशालतम एटम स्मेशर’ का इस्तेमाल टाइम मशीन के रूप में किया जा सकता है। इसके जरिए एक विशेष प्रकार के पदार्थ को गुजरे हुए काल में भेजा जा सकता है।

वैज्ञानिकों ने इसके लिए एक विधि की रूपरेखा पेश की है। इस विधि के तहत 27 किमी लंबे एलएचसी का इस्तेमाल अवधारणागत कण को गुजरे हुए काल में भेजने के लिए किया जा सकता है। इस कण को हिग्स सिंग्लेट कहा जाता है।
लाइव साइंस की खबर के अनुसार फिलहाल तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं। इनमें यह सवाल भी है क्या हिग्स सिंग्लेट का कोई अस्तित्व है भी या नहीं और क्या इसे मशीन में उत्पन्न किया जा सकता है।
वेंडरबिल्ट विश्वविद्यालय के भौतिकी वैज्ञानिक टाम वेइलर ने एक बयान में कहा कि हमारा सिद्धांत लांग शॉट हैलेकिन यह भौतिकी के किसी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता या इसमें प्रयोगगत कोई बाधा नहीं है।
खौफनाक इलाका जहां उठती हैं लपटें, रुकती हैं घड़ियां

मॉस्को. रूस के उराल क्षेत्र में स्थित पर्म नामक स्थान (ऍम ज़ोन)विचित्र रहस्यों से घिरा हुआ है। माना जाता है कि एकेतेरिनाबर्ग से करीब 280 किलोमीटर दूर स्थित पर्म क्षेत्र में दूसरे ग्रहों से आए अंतरिक्ष यान उतरते रहते हैं।

इस स्थान पर कई उड़न तश्तरियों को देखा गया है। इस जगह का दौरा करने वाले हर व्यक्ति को कुछ अज्ञात, रहस्यपूर्ण और चमत्कारिक शक्तियों की उपस्थिति महसूस होती है। इस स्थान पर कुछ रहस्यमयी आवाजें सुनाईं देती हैं, जिनके स्रोत का कभी पता नहीं लगाया जा सका। कई मामलों में रूस का बरमूडा त्रिकोण कहे जाने वाले पर्म जोन में आने वाले बीमार लोग बिना किसी इलाज के ठीक हो गए।

दुनिया की निगाह में पर्म सबसे पहले वर्ष 1989 में आया। मोलेब्का और कामेंका गांवों के बीच सिल्वा नदी के किनारे फैले करीब 44 वर्ग किलोमीटर के इस क्षेत्र के रहस्यों का अभी तक खुलासा नहीं हो सका है। इस इलाके में कई बार अचानक आग की तेज लपटें उठती हैं। माना जाता है कि इस क्षेत्र में धरती के नीचे तेल के भंडार हैं। तेल के ऊपर आने से आग की लपटें उठ सकती हैं। इस वैज्ञानिक कारण को मान लेने के बावजूद यह काफी असामान्य घटना है। 



मोलेब्का गांव में सेलफोन केवल कुछ ऊंची पहाड़ियों पर ही काम करता है। लोग केवल स्थानीय ऑपरेटर के माध्यम से ही फोन कर सकते हैं। परंतु वहां २गुणा२ मीटर का एक ऐसा स्थान है जहां खड़े होने पर मोबाइल फोन का नेटवर्क बेहतरीन ढंग से काम करता है। 

अचानक ठप्प हो जाती हैं इलेक्ट्रॉनिक घड़ियां
इस क्षेत्र में कई प्रयोगों के दौरान पाया गया कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अचानक काम करना बंद कर देते हैं। कई पर्यटकों की इलेक्ट्रॉनिक घड़ियां अचानक बंद हो जाती हैं। कई बार तो घड़ियों के समय में बदलाव की घटनाएं भी सामने आईं। इलाके के रहस्यों में शोध कार्यो के लिए गए वैज्ञानिकों में से कई ने स्वीकार किया कि उनको हर समय लगता था कि कोई उन पर हर समय निगाह रखे हुए है।
अब हिममानवों के रहस्यों से पर्दा उठाएगा चीन

चीन में अबतक महामानव के मौजूदगी की 400 रिपोर्ट मिल चुकी है। अब चीन के एक रिसर्च संस्था ने येती के रहस्यों से पर्दा उठाने की ठान ली है। चीनी मीडिया में एक विशालकाय मानव के विडियो ने सनसनी मचा दी है। जिसे दुनिया भर के वैज्ञानिक येति या हिममानव बुलाते हैं। इस वीडियो में हिममानव को साफ देखा जा सकता है। एक बार फिर इस वीडियो ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों में खलबली मचा दी है कि क्या हिममानव का अस्तित्व है। क्या हिममानव बर्फीले पहाड़ों में रहते हैं।

चीन के एक रिसर्च संस्था ने फैसला किया है कि येति यानी महामानव के रहस्यों से पर्दा उठाने का समय आ गया है। इसके लिए ये संस्था वैज्ञानिकों की एक टीम बनाने जा रही है जो येति का पूरा सच दुनिया के सामने लाएंगे। हाल ही में चीन के हुबेई प्रांत में हेती के पैरों के निशान देखे जाने की खबर आई


येती

उसी के बाद हुबेई वाइल्ड मैन रिसर्च एसोशिएशन ने ये फैसला किया कि वो इस बार पूरी तैयारी के साथ येति की खोज करेंगे। पहले भी चीन और तिब्ब्त से सटे हिमालय के पहाड़ियों में येती के देखे जाने की खबरें आईं थी। जिसके बाद ही वैज्ञानिकों की टीम उनकी तलाश में एक सर्च ऑपरेशन में जुट गई थीं। लेकिन उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा था। लेकिन उसके बाद भी हिम मानव को देखे जाने की खबरें आईं। अब वाइल्ड मैन रिसर्च संस्था इस बार नई तकनीक के साथ हिममानव के खोज में लग गई है। इसके लिए 5 टीमों का गठन किया जाएगा और पूरे इलाके में कैमरों का जाल बिछाया जाएगा। वैसे जानकारों की मानें तो महामानव का अस्तित्व संभव है इस खोज में तकरीबन एक मिलियन डॉलर की लागत लगेगी और इस संस्था ने ये पैसे भी जुगाड़ लिए हैं। संस्था की मानें तो 70 और 80 के दशक में महामानव के खोज अभियान में कई खामियां थीं। लेकिन इस बार इस टीम में दुनिया भर के बेहतरीन वैज्ञानिक होंगे। जो चीन के साथ साथ नार्थ अमेरिका के बिग फुट के रहस्यों का पता लगाएंगे। पहले की खोज में मिले सबूतों जैसे कि महामानव के पैरों के निशान, उनके बालों के नमूने के आधार पर ये खोजी अभियान शुरू होगा।

ये महामानव अभी तक हमारे लिए एक रहस्य बना हुआ है। पहली बार पूरी तैयारी के साथ वैज्ञानिक इस खोज में जुटेंगे। हो सकता है कि इनका वजूद ही न हो और ये सिर्फ किस्से कहानियों का एक हिस्सा बनकर रह जाए। लेकिन अगर महामानव के वजूद की पुष्टि हो जाती है तो ये तो ये 1930 के बाद से जीव विज्ञान की सबसे बड़ी खोज होगी।
पल भर दिखने के बाद कहां गायब हो जाता है हिममानव

इस रहस्मयी जीव को हिममानव भी कहा जाता है। हिममानव इसलिए क्योंकि ये ज्यादातर बर्फिले इलाके में ही लोगों को दिखता है। तिब्बत और नेपाल के लोग दो तरह के येति के बारे में बाताते हैं। जिसमें एक इंसान और बंदर के हाईब्रिड की तरह दिखता है। ये रहस्यमयी हिममानव दो मीटर लंबा और भूरे वालों वाला होता है और इसका वजन 200 किलो तक होताहै । जबकि दूसरे किस्म का येति समान्य इंसान से छोटे कद का दिखता है। इसके बाल लाल और भूरे रंग के होते हैं।
दोनों ही हिममानवों में एक बात सामान्य है कि ये दोनों ही इंसानों की तरह खड़े होकर चलते है और इंसानों को चकमा देने में माहिर होते है। ये रात में शिकार करते है और दिन में सोते है
दुनियाभर में अलग नामों से जाना जाता है हिममानव
ऐसा नहीं है कि हिमामानव का अस्तित्व सिर्फ एशिया में है। दुनिया भर में हिममानव को सैकड़ों साल से लोग देखने का दावा करते आ रहे हैं। इस रहस्यमयी प्राणी को दुनिया भर के कई इलाके में अलग अलग नामों से जाना जाता है। दक्षिण पश्चिमी अमेरिका में हिममानव को बड़े पैरों वाला प्राणी यानि बिगफुट कहा जाता है जबकि कनाडा में सास्कयूआच अमेजन में मपिंगुअरी और एशिया में येति के नाम से जाना जाता है।

अगर येति का सिर्फ बर्फ में ठिकाना है तो हो सकता है कि येति पहाड़ के किसी गुफा में रहता हो या फिर येति बर्फ में छिपने में माहिर हो तभी तो थोड़ी देर दिखने के बाद वो गायब हो जाता है। येति के अस्तित्व को लेकर तमाम तरह की बातें कही जाती है। ऐसे में पूरी दुनिया में दिखाई देने वाले इस जादुई प्राणी के अस्तित्व से इंकार नहीं किया जा सकता।

हो सकता है कि येति इंसान के ही किसी विकास की कड़ी हो लेकिन तमाम तरह के अत्याधुनिक साधन होने के बाद भी ये प्राणी आज भी इंसान की पहुंच से दूर है। दुनिया भर के वैज्ञानिक रिसर्च में जुटे हैं लेकिन हिममानव के अस्तित्व के बारे में कोई भी पुख्ता सबूत मौजूद नहीं हैं।
अब तक कहां कहां दिखा है महामानव

हिममानव को येति के नाम से भी जाना जाता है। कई बार वैज्ञानिकों ने उसे देखने का दावा किया है। लेकिन बर्फिले इलाके में वो कहां रहता है और कहां गायब हो जाता है इसका पता अबतक नहीं चल पाया है। हिममानव के बारे में 1832 में पहली बार बंगाल के एशियाटिक सोसाइटी के एक पर्वतारोही ने कुछ जानकारी दी। पर्वतारोही ने दावा किया कि उत्तरी नेपाल में ट्रैकिंग के दौरान उसके स्थानीय गाइड ने एक ऐसे प्राणी को देखा जो इंसान की तरह दो पैरों पर चल रहा था। उसके शरीर पर घने बाल थे। इसके बाद 1889 में पर्वतारोहियों ने एक समूह से बर्फ में ऐसे किसी प्राणी का फुटप्रिंट देखा जो इंसान की तुलना में काफी बड़ा था।

1925 में एक फोटोग्राफर ने जेमू ग्लेशियर के पास एक विचित्र प्राणी को देखने का दावा किया था। उसकी आकृति इंसान जैसी थी। वो सीधा खड़े होकर चल रहा था और झाड़ियों के सामने रूक-रूक कर पत्तियां खींच रहा था। वो बर्फ में काला दिख रहा था।

येति के बारे में पहली बार ठोस सबूत 1951 में मिला, जब एवरेस्ट चोटी पर चढ़ने का प्रयास करने वाले एक पर्वतारोही ने 19,685 फीट की ऊंचाई पर बर्फ पर बने पदचिन्हों के तस्वीरों के फोटो लिए। इन फुटप्रिन्टस पर आज भी रिसर्च किया जा रहा है। कई लोग इसे येति की वास्तविकता का बेहतरीन सबूत मानते हैं लेकिन कुछ इसे किसी दूसरे सांसारिक जीव के तौर पर देखते है। 1953 में सर एडमंड हिलरी और तेनजिंग नोर्गे ने भी एवरेस्ट चढ़ाई के दौरान बड़े-बड़े पदचिह्न देखने की बात कही।

फुट प्रिन्ट्स मिलने के बाद 1960 में सर एडमंड हिलरी अपने एक दल के साथ येति से जुड़े सबूतों की खोज में निकल पड़े। इस बार उन्होंने इंफ्रारेड फोटोग्राफी की मदद भी ली, लेकिन 10 महीने तक हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों में रहने के बावजूद उनके हाथ कोई ठोस सबूत नहीं लगा।

1970 में एक ब्रिटिश पर्वतारोही ने दावा किया कि अन्नपूर्णा चोटी पर चढ़ने के दौरान उन्होंने एक विचित्र प्राणी को देखा और उसकी आवाज भी सुनी। 1998 में एक अमेरिकी पर्वतारोही ने एवरेस्ट से चीन की तरफ से उतरते हुए येति के एक जोड़े को देखने का दावा किया। उस पर्वतारोही के मुताबिक दोनों के काले फर थे और वे सीधे खड़े होकर चल रहे थे। 2008 में भी मेघालय में हिममानव यानी येति को देखने का दावा किया गया। इसके कोई ठोस सबूत आज तक नहीं मिला । हो सकता है इस हिममानव का हिमालय के क्षेत्रों में अस्तित्व हो जो इंसान के सामने नहीं आना चाहाता। ऐसे में जबतक इंसान हिममानव तक नहीं पहुंच जाता ये प्राणी रहस्यमयी दुनिया के लिए एक बड़ा रहस्य बना रहेगा ।

Monday, June 6, 2011


साइंस को चुनौती दे रहे हैं न्यूजीलैंड के यह 'रहस्यमयी' पत्थर





















न्यूजीलैंड के ओटागो तट पर मोएराकी और हैंपडेन के बीच बहुत से विचित्र किस्म के गोलाकार पत्थर बिखरे हुए हैं। मोएराकी बोल्डर्स कहे जाने वाले ये रहस्यमयी पत्थर क्या हैं और धरती पर ये कैसे या किस तरह वजूद में आए हैं। इस तरह के कई सवाल हमेशा से साइंस को चुनौती देते रहे हैं।

इतना जरूर कहा जा सकता है कि यहां पर इनकी मौजूदगी में भूक्षरण (मिट्टी का बहकर जाना), संघनन (तत्वों का घनीभूत होकर ठोस आकार लेना) और समय का अहम रोल रहा होगा। इस जगह पर ये पत्थर पहले नहीं रहे होंगे। कई मिलेनियम में लहरों के साथ ये मटेरियल यहां आकर जमा हुआ होगा। ये सेडीमेंट्री रॉक (तलछटी) हैं, जिनके कणों के बीच में सीमेंट जैसा मटेरियल और भीतरी हिस्से में मिट्टी होगी। ये किस तरह बने, इससे भी बड़ा सवाल इनका बड़ा साइज है।

इनके संघनन की प्रक्रिया में काबरेनेट मिनरल कैलसाइट का खास रोल रहा है। बाहर से ये बेहद ठोस हैं, लेकिन इनका भीतरी हिस्सा किसी कमजोर चीज से बना है। पत्थरों के बाहरी हिस्से पर बने क्रैक्स को सेपटारिआ कहा जाता है। सभी पत्थरों के बीच का हिस्सा खोखला है।

इन पर क्रैक कैसे बने, ये भी समझ नहीं आता है। इनकी उम्र के बारे में भी अनुमान है कि ये करीब 40 से 55 लाख साल पुराने हो सकते हैं। मोएराकी बोल्डर्स की कहानी कुछ भी हो लेकिन न्यूजीलैंड का ओटागो तट इनकी वजह से मशहूर पर्यटन स्थल बन गया है।
राज है गहरा
न्यूजीलैंड के एक तटीय इलाके में समुद्र के किनारे बिखरे ये विचित्र पत्थर किस तरह बने हैं, इस सवाल का जवाब वैज्ञानिकों के पास भी नहीं है। इतना ही नहीं इनकी सही उम्र का भी सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सका है। इनका बड़ा साइज और बाहरी सतह पर बने क्रैक्स का कारण भी आज तक रहस्य बना हुआ है।

Sunday, June 5, 2011

A unique case of life with such a diagnosis! (Photo)





Oldest conjoined twins in the world - American Abigail and Brittany Hensel - celebrated their 18 th birthday!
Girls who did not dream that they shared, build big plans for the future: go to college, get married and have kids.
Abigail and Brittany are a unique case. Out of every 50,000 births a pair of twins is born bonded in some way. In turn, of which only one percent of the population of more than one year. Girls are spliced ​​from the chest down. They have two broad hands and feet. They have two hearts, two pairs of lungs, but only one liver, bladder, ribcage and pelvis. Each controls its side of the body and can not feel anything on the other. In this case we are talking about two completely different people.
During the meal they have separate dishes, and they in turn take food and put each other in the mouth. Parents of girls, 47-year-old nurse, Patty, and 48-year-old carpenter, Mike decided not to separate them at birth because of the risks and never regret about it. "From the first time we saw them, we think they are beautiful. It's the most wonderful kids in the world" - says Patti.
On this Site: bugaga.ru .

The incredible discovery could rewrite history!

A group of divers found the wreckage of the liner "Lusitania" sunk off the coast of Ireland, 7 May 1915 by a German submarine, secretly remitting load ammunition. One of the largest at the time - along with the Titanic - passenger ships of 1931 tons was torpedoed by a German submarine U-20 and went to the bottom in just 18 minutes. Killed 1,198 people, including 139 Americans.
That attack triggered sharp protests in the world and became a reason for U.S. entry into World War. Germany has accused the owners of "Lusitania" in a secret shipment of arms from the U.S. to Europe on the Western Front. UK government and the U.S. denied this version, saying that the ship there were only civilians. Finding the wreck of ammunition, including bullets, "Remington", used by the British at the front, and revives the old controversy over the sinking of the vessel, which is considered one of the biggest war crime in history, said today the newspaper Sunday Express.
Investigation of the vessel, resting at a depth of just over 100 meters in 12 kilometers to the south coast of Ireland, conducted with the permission of the Government. "What we found - as one of the divers said Tim Carey - leaves no doubt that the" Lusitania "delivers ammunition from the U.S. European allied forces."
According to the expert the London Imperial War Museum Nick Hewitt, the sinking of "Lusitania" was "one of the most tragic events, milestones in the First World War, and it is considered by many, especially Americans, as a planned murder." "Today's discovery - an important historical record," - says Hewitt.

Shock! Managed to capture the Loch Ness monster




The photograph shows an image similar to a large sea animal with two pairs of flippers and a large tail ...
Photo of Nessie - the monster from the bottom of the Scottish Loch Ness could see one of the readers of British tabloid Sun while viewing images from the satellite site Google Earth.
The photograph shows an image similar to a large sea animal with two pairs of flippers and a large tail.
According to the authors, this picture may be weak, but still proof of the existence of Loch Ness Monster.
According to other users of Google Earth, seeing a photo of Nessie, it is exactly like the description of the monster, previously encountered in the press, reports RIA Novosti.
Loch Ness in Scotland has received worldwide fame thanks to the legend of the monster named Nessie, who lives at the bottom of the pond. There are numerous commercial routes across the lake for tourists wishing to enjoy not only nature, but may have seen the mythical monster.
On site materials timer-ua.com

Israel has unveiled a video of UFOs

 from the folder "Top Secret"

Photo: NEWSru.com
State Archives of Israel issued a videotape, which depicted an unidentified flying object. 
In this department does not provide any details about when and where the mysterious shooting.
Israeli media refer to these sensational footage first appearance of video evidence of UFOs 
in the skies over Israel.
Previously, information on UFO sightings in Israel has already attracted the attention of ufologists, 
but has not been officially confirmed. So the inhabitants of the town of Kfar Saba told reporters 
that constantly see in the night sky a strange glowing object.