क्या भगवानजी ही थे सुभाषचंद्र बोस
राज है गहरा : फैजाबाद में काफी समय तक रहे हरमीत भगवानजी को लोग मानते हैं कि वे नेताजी सुभाषचंद्र बोस थे। दर्जनों ऐसी बातें हैं जो ये साबित भी करती हैं। भारत सरकार ने जस्टिस मुखर्जी कमीशन से इसकी जांच भी करवाई। रिपोर्ट में सबूतों की कमी बताई गई, लेकिन मुखर्जी खुद भी मानते थे कि भगवानजी ही बोस थे।
बहुत से लोगों का मानना है कि उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में रहने वाले हरमीत भगवानजी ही सुभाषचंद्र बोस थे। गुमनामी बाबा के नाम से मशहूर भगवानजी का जीवन काफी रहस्यमयी रहा। वे यहां कब और कहां से आए थे, ये कोई नहीं जानता। 1985 में उनकी मौत हो गई थी। कम से कम चार मौकों पर उन्होंने खुद भी कहा था कि वे ही नेताजी हैं। उनकी मौत के बाद कोर्ट के आदेश से उनका सारा सामान कब्जे में ले लिया गया था। फिर जस्टिस मुखर्जी कमीशन ने भी इसकी जांच की थी। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। फिर भी बाद में एक डॉक्यूमेंट्री में कहा कि उन्हें भी लगता है कि भगवानजी ही बोस थे।
भगवानजी की मौत 16 सितंबर 1985 में हुई थी। उनका अंतिम संस्कार भी रहस्यमयी तरीके से रात के अंधेरे में मोटर साइकिलों की लाइट्स में किया गया। उनकी पहचान छिपाने के लिए उनका चेहरा भी एसिड से बिगाड़ा गया था। आज भी फैजाबाद के बंगाली लोग सुभाषचंद्र बोस की जयंती पर गुमनामी बाबा की समाधि पर श्रद्धांजलि देते हैं। भगवानजी की आवाज, कद-काठी और उम्र भी नेताजीजैसी ही थी। नेताजी जैसी ही उनकी भी पढ़ने की आदत थी। दोनों के बहुत से दोस्त भी समान थे। नेताजी की तरह उनके दांतों में भी गैप था। उनके पेट के निचले हिस्से में निशान भी नेताजी जैसा ही था। दोनों गोल कांच का चश्मा लगाते थे और घड़ी भी एक जैसी ही पहनते थे। नेताजी के परिवार से जुड़ी बहुत-सी दुर्लभ तस्वीरें और दस्तावेज भगवानजी के घर से बरामद हुए। भगवानजी इंग्लिश, हिन्दी, संस्कृत और जर्मन भाषा में माहिर थे। काफी जांच के बाद भी सुभाषचंद्र बोस की मौत और हरमीत भगवानजी का रहस्य सुलझाया नहीं जा सका।
साजिश था गायब होना
सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 में ओडिशा (अब उड़ीसा) के कटक में हुआ था। समझा जाता है कि 18 अगस्त 1945 को ताइवान में एक विमान दुर्घटना में उनकी मौत हो गई थी। फिर भी ये बाद साबित नहीं होती है। कहा जाता है कि जापान के साथ मिलकर उन्होंने गायब होने के लिए ये साजिश की थी। इसके बाद वे
रूस जाकर स्टालिन के साथ भारत की आजादी के लिए काम करते रहे।
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