Thursday, June 23, 2011

वोह सफेद दाग ! 


यह अजीबोगरीब वाकया हमारे देश की राजधानी दिल्ली का है ….उस समय तक दिल्ली पूरी तरह से आबाद नहीं हुई थी ….शहर के बाहर की तरफ लंबे – चौड़े बियाबान जंगल हुआ करते थे ….हमारी इस कहानी के नायक को अपने काम से वापिस आते हुए एक जटाधारी साधु मिल गया सड़क पे चलते – चलते …. और वोह धार्मिक स्वभाव का प्राणी उन साधु महाशय को अपने साथ घर में ले आया …उन साधु महाराज ने कहा कि इतवार को हम शहर की बाहर कि तरफ के जंगल में चलेंगे ….. नियत दिन को साधु महाराज ने अपने लिए सभी जरूरी समान लिया जो की उन्होंने पहले से ही मंगवा कर रख लिया था …. .और अपनी पूरी तैयारी करके उस व्यक्ति को साथ में लेकर दोनों जने दोपहर से पहले जंगल में पहुँच गये …..

वहाँ पहुँचने पर साधू महाराज ने उस को कहाँ कि अब मैं एक अजब कौतुक करने वाला हूँ ….क्या तू इतने मजबूत दिल का है कि उसको देख सकता है ? … उस व्यक्ति के इनकार करने पर साधु महाराज ने कहा कि वैसे भी उसका तो तुमको थोड़ी दूर से ही नज़ारा करना पड़ेगा , यहाँ रह कर तो तू उसको देख भी नहीं सकेगा …. यह कहते हए उसको एक चौड़े तने वाले बड़े सारे पेड़ पर चढ़ जाने को कहा …..
उसके बाद वोह पालथी मार कर ज़मीन पर बैठ गए ….उन्होंने अपने साथ लाए हुए झोले में से किसी तरल पदार्थ की एक बोतल निकाली ….. और सावधानीपूर्वक उस का सारा द्रव्य अपने सारे शरीर के ऊपर सिर से लेकर पैर तक बहुत ही अच्छी तरह से मालिश की तरह मल लिया ….. फिर इस बात से पूरी तरह आश्वश्त होने के बाद कि शरीर का कोई भी अंग या कोना उस द्रव्य से अछूता नहीं रह गया …उन्होंने अपने झोले से एक अजीब सी लकड़ी की बनी हुई पुंगी निकाली …उसको ना तो बांसुरी और ना ही सपेरों वाली बीन ही कहा जा सकता था उस वाद्ध यंत्र को अपने मुह से लगा कर उन साधु महाराज ने अपनी आँखे बंद कर के पूरी मस्ती में आकर बजाना शुरू कर दिया …और उस वाद्ध यंत्र से एक अजीब सी धुन निकल कर उस जंगल की फिजा में गूंज उठी ….अभी कुछ पल ही बीते थे कि ना जाने कहाँ -२ से , सभी दिशाओं से सांप आ – आकर वहाँ पे इकटठा होने लग गये …..उन सबमें ही यह खासियत थी कि वोह सभी एक ही किस्म से ताल्लुक रखते थे …उन सभी ने उन साधू महाराज से कुछ दुरी बनाते हुए उनके इर्द – गिर्द एक गौल घेरा सा बना लिया था …..


साधु महाराज ने अपनी आँखे खोल कर चारों तरफ का अच्छी तरह से जायजा लिया ….जब उनको पूरा इत्मीनान हो गया कि इस नस्ल का अब कोई भी और सांप नहीं आएगा तब उन्होंने अचानक ही अपनी उस पुंगी में से बजने वाली धुन के स्वरों को बदल दिया …अब वातावरण में एक दूसरी तरह कि धुन गूंजने लग गई थी … और उस धुन के बदलते ही अब जो सांप आने लग गये थे वोह बिलकुल ही दूसरी किस्म के थे…. उन्होंने भी वहाँ पे आकर पहले वाले सांपो के ऊपर की तरफ कुछ फासला कायम रखते हुए पहले वाले गोल दायरे से बड़ा एक दूसरा गोल दायरा बना लिया था ….
इसी प्रकार वोह साधु धुनों को बदल -२ कर अलग -२ तरह की स्वर लहरियों को छेड़ता रहा और एक के बाद एक करके अलग -२ तरह के कई दायरे सांपो के वहाँ पे बनते चले गये …. और आखिर में उस साधू ने एक अजीब सी धुन छेड़ी ….. उसके फिज़ा में गूंजते ही सारा वातावरण अजीब और रहस्यमय सा लगने लग गया ….काफी देर के बाद उस साधु कि मेहनत रंग ले आयी ….उसने दूर से ही देखा कि दो काले रंग के किंग – कोबरा जैसे सांप अपने फन आपस में जोड़ कर फैलाए हुए एक ही चाल से चलते चले आ रहे थे ….और मज़े कि बात यह की उनके जुड़े हुए फनों पर बड़े ही आराम से किसी शहंशाह की माफिक अपना फन फैला कर एक और सांप बैठा हुआ था ….. जिसकी लम्बाई बड़ी ही मुश्किल से दो फुट के करीब रही होगी …… जब वोह सांप रूपी सम्राट दो सांपो के फनों पे सवार होकर सबसे आखिर वाले सांपो के दायरे के पास पहुंचा तो उनको बड़े ही अदब से रास्ते में आने वाले सांपो द्वारा अगल –बगल हटते हुए आगे जाने का रास्ता दे दिया गया …. इसी प्रकार उनसे आगे के बाकी के दायरे वाले सांप भी उनको रास्ता देते चले गए जब सांपो के आखरी घेरे को उन्होंने पार किया तो वोह लाल रंग का सम्राट उन दो सांपो के फनों से उतर कर उन साधू महाराज के बिलकुल ही पास पहुँच गया ….. उधर – ऊपर पेड़ पर चढ़े हुए उस आदमी की हालत का आप आसानी से अंदाज़ा लगा सकते है … बस गनीमत यह थी कि उस का हार्ट फेल नहीं हुआ था ……इधर – उस साधु महाराज ने अब उस पुंगी की धुन को बदल दिया था …. और वोह सांप अब रेंगते हुए उनके जिस्म से होते हुआ उनके सिर पर पहुँच गया था …..इस प्रकार उसने उनके सारे बदन का भली – भांति से जायजा लिया ….. शायद और यकीनन वोह उनके बदन के उस हिस्से की तलाश में था कि जोकि उस बोतल वाले द्रव्य के लेप से अछूता रह गया हो … लेकिन उस सांपो के राजा के हाथ घोर निराशा ही लगी …. अपनी उस कोशिश में विफल होने के बाद अब वोह उन साधु महाराज के जिस्म से रेंगते हुए उतरकर उनके सामने अपना फन फैलाऐ हुए गुस्से से लहराने लग गया था ….लेकिन साधु महाराज अपनी हू मस्ती में उस पुंगी को बजाते ही रहे …. कुछ देर के बाद वोह सांपो का सम्राट अब उस पुंगी की धुन पे मस्त सा हो चला था ….. वोह साधु महाराज भी शायद इसी वक्त का इंतज़ार कर रहे थे …पुंगी बजाते हुए ही उन्होंने अपने बिलकुल पास ही रखा हुआ तेज़धार चाक़ू अपने हाथ में बड़ी ही सावधानीपूर्वक उठा लिया …. और उस साधु ने उचित मौका देखकर उस सांपो के राजा का अपने दूसरे हाथ में थामे हुए चाकू के एक ही वार से काम तमाम करते हुए उसके फन को धड़ से अलग कर दिया …..उस सांपो के राजा के मरने भर की देर थी कि गोल दायरों में अपना -२ फन फैला कर बैठे हुए सभी सांप चुपचाप उदास मन से चले गये जिधर से कि शायद वोह आये थे …..उन सभी के चले जाने के बाद साधु महाराज ने उस व्यक्ति को आवाज देकर नीचे बुलाना चाहा … मगर उसकी हालत इतनी पतली थी कि उसको साधु महाराज को पेड़ पर चढ़ कर हिम्मत के साथ सहारा देते हुए नीचे उतारना पड़ा …..और उसके होश कुछ देर बाद किसी हद तक सामान्य होने पर साधु महाराज ने उसको आग जलाने के लिए कुछेक लकड़ियो कि व्यवस्था करने को कहा ….. आग के जलने पर उस साधु ने अपने साथ पहले से लायी हुई एक छोटी सी कढ़ाही में तेल डाल दिया ….उसके अच्छी तरह गर्म होने पर उसमें अपने झोले में से कई तरह के मसाले निकाल कर उस कढ़ाही में डाल दिए …उसके बाद सबसे आखिर में उस म्रत सांप के कई छोटे -२ टुकड़े काट कर के उस कढ़ाही में डाल दिए ….
उस अपनी तरह के इस सृष्टि के अनोखे पकवान के तैयार हो जाने पर साधु ने वोह रोटियां निकाली जो कि वोह आते समय बनवा कर साथ में ले आया था … साधु ने खाना खाने के लिए उस आदमी को भी कहा … लेकिन बहुत जोर देने पर भी वोह किसी भी तरह खाना खाने में उस साधु का साथ देने को राज़ी नहीं हुआ ….तब साधू ने बहुत ही ज़बरदस्ती करते हुए रौब से उसकी हथेली पे उस पकवान का थोड़ा सा मसाला रख दिया कि इसको तो तुमको खाना ही पड़ेगा ….उस बेचारे के होश तो पहले से ही फाख्ता हुए पड़े थे …किसी तरह अपने जी को कड़ा करते हुए डरते – डरते उसने उस मसाले को चाटते हुए निगल सा लिया…
वहाँ का सारा काम ज़ब तमाम हो गया तब उन्होंने अपना समान समेटते हुए वापिस घर की राह पकड़ी …..रास्ते में तो डर के मारे उस व्यक्ति का ध्यान खुद पे नहीं गया … लेकिन जब वोह उस जंगल को पार करके शहर कि आबादी वाले इलाके से थोड़ी ही दूरी पे पहुंचे थे … तो उस व्यक्ति का ध्यान एकाएक अपने शरीर की तरफ चला गया … यह देख कर उसकी हैरानी की कोई हद ना रही कि उसका सारा शरीर तो जैसे चांदी जैसे रंग का हो कर दमकने लग गया था … तब वोह उस साधु के चरणों पे गिर गया कि यह क्या हो गया है मुझको …अब लोग मुझसे मेरी इस हालत के बारे में पूछेंगे तो मैं क्या जवाब दूँगा उन सबको ?….साधु ने कहा कि बस इतनी सी ही बात ! …. उनको तुम कुछ भी कह देना मगर असली बात मत बताना …..लेकिन वोह व्यक्ति बार -२ उनसे खुद को पहले जैसी हालत में लाने की ही प्रार्थना करता रहा …तब उस साधु ने उसको यह कहते हुए पहले जैसी अवस्था में ला दिया कि “ जा रे , तू इतनी सी बात भी गुप्त नहीं रख सकता था”……उसके बाद वोह साधु महाराज अपने अगले गंतव्य की और चले गये और वोह शख्श अपने होशो – हवाश को दरुस्त करता हुआ किसी ना किसी तरह से अपने घर पहुँच गया … पूरे दो दिन तक वोह बुखार में अपने घर में ही पड़ा रहा …..बाद में जब उसने लोगो को अपने साथ घटने वाले उस सारे वाकये को बताया तो किसी ने तो उसकी बात पे विश्वाश किया और किसी ने नहीं …मगर हर ना विश्वाश करने वाले को वोह अपनी हथेली पर चांदी के रंग का बना हुआ वोह निशान जरूर दिखलाता …जोकि साधु द्वारा उसकी हथेली पर रखे हुए उस पकवान के रखे जाने पर बन गया था ……

( एक सत्य घटना पर आधारित – भुक्त भोगी और उस वाकये के चश्मदीद द्वारा जैसे कि बताया गया )

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